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A als neue Leitversion  |
C als neue Leitversion  |
C als neue Leitversion  |
E als neue Leitversion  |
G₁ als neue Leitversion  |
O₁ als neue Leitversion  |
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| C Wa 170 (166 [172]) |
| I | |
| I | C Wa 170 (166 [172]) = L 49,25 |
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| Überlieferung: Heidelberg, UB, cpg 848, fol. 132rb |
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| | [ini H|2|rot]erzeliebe fr{ow|ouw}e mir·,[[3 i¬mir~i freier Dat. (vgl. h¬25~hMhd. Gramm. § S 92); eine Verschreibung liegt mit Blick auf das Reimwort in V. 3 nicht nahe (vgl. auch {Schweikle 2011 # 546}, S. 699).]] |
| | got gebe dir h{u^i|iu}-/te #vn#d iemer g{u^o|uo}t·![[3 i¬guot~i stN. ›Gutes‹ (Le I, Sp. 1122).]] |
| | k#vnde ich wol ge#spre-/chen dir·, |
| | des hete ich wille{k|c}l{i|î}che#n m{#v^o|uo}t·. |
| | w#c / #sol ich dir #sagen m{e|ê}·, |
| | wan d#c dir¦nieman / holder i#st danne ich? d{a|â} vo#n i#st mir w{e|ê}·. / |
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| E Wa 58 |
| I | |
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| Überlieferung: München, UB, 2° Cod. ms. 731, fol. 171vb |
| | [rub %walther· rub] / |
| | [ini H|2|rot]er{tz|z}eliebez fr{au|ou}wel{i|î}n·, |
| | got der / gebe dir h{u^e|iu}te #vn#d imm#er g{u^o|uo}t![[3 i¬guot~i stN. ›Gutes‹ (Le I, Sp. 1122).]] |
| | k{o^e|ö}n/de ich baz gedenken[[3 i¬gedenken~i swV. hier ›rühmen, verehren‹ (vgl. {Bein # 3737}).]] d{i|î}n·, |
| | des het ich / wille{n|}cl{i|î}chen m{u^o|uo}t·. |
| | waz #sol ich dir / #sagen m{e|ê}, |
| | wa{nn|n}{e|}[[5 i¬wanne~i$ Nebenform von i¬wan~i (›außer‹) durch Verwechslung mit i¬wande~i (Le III, Sp. 667).]] daz dir nieman / holder i#st? d{o|a}r {#v^e|u}{mm|mb}e i#st mir dicke / w{e|ê}. |
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| G₁ Namenl 4 |
| I | |
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| Überlieferung: München, BSB, Cgm 5249/74, fol. 1r |
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| | [ini M|2|rot]inne{#nch|c}l{ei|î}chez / vr{e|ou}wel{ei|î}n#·, |
| | got der geb dir h{e#v|iu}te g{#ve|uo}t#·![[3 i¬guot~i stN. ›Gutes‹ (Le I, Sp. 1122).]] |
| | #fz |
| | des / het ich wille{ch|c}l{ei|î}chen m{#ve|uo}t#·. |
| | waz ma{g|c} ich dir ge/#sagn m{e|ê}#·, |
| | wan daz dir niem[[3 i¬niem~i = i¬nieman~i.]] holdir i#st#·? {o|ô}w{e|ê}, d{a|â} / von i#st mir #s{o|ô} w{e|ê}#·. |
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| O₁ Namenl 18 |
| I | |
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| Überlieferung: Krakau, Bibl. Jagiellońska, Berol. mgo 682 , fol. 3r |
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| | #fz[[1 Beginn fehlt (Fragment)]] |
| | #fz |
| | #fz |
| | ich will{i|e}{ch|c}l{i|î}che#n m{#v^o|uo}t. #// |
| | waz #sol ich dir #sagen m{e|ê}, #/ |
| | w{e|a}n[[5 i¬wen~i = i¬wan~i.]] daz / dir n{ey|ie}man holder i#st? {o|ô}w{e|ê}, d{a|â} von i#st mir #s{o|ô} w{e|ê}. #/ |
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| C Wa 171 (167 [173]) |
| II | |
| II | C Wa 171 (167 [173]) = L 49,31 |
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| Überlieferung: Heidelberg, UB, cpg 848, fol. 132rb |
| | [ini S|2|rot]i v#erk{e|ê}rent[[3 i¬verkêren~i stV. ›übel auslegen‹ (Le III, Sp. 141).]] mir, d#c ich· |
| | #s{o|ô} nidere wen-/de[[3 i¬nider wenden~i ›zu etw. Niederem/nach unten hinwenden‹; gemeint ist die niedere Minne.]] m{i|î}ne#n #sanc·. |
| | d#c #si niht v#er#sinne#nt[[1 Tinte bei i¬et¬2~t~i in i¬v#er#sinne#nt~i verlaufen, wohl nicht gebessert]][[3 i¬versinnen~i stV. ›verstehen, sich verstehen auf‹ (Le III, Sp. 230).]] #sich·, / |
| | wa#s mi#nne #s{i|î}, des haben[[3 Ergänze: ›sie‹. Zur Nichtbezeichnung des pronominalen Subjekts vgl. h¬25~hMhd. Gramm. § S 110.]] #vndanc·![[3 i¬undanc haben~i ›verwünscht sein‹ (vgl. Le II, Sp. 1774).]] |
| | die ge-/traf[[3 i¬treffen~i stV. hier ›emotional ergreifen‹ (vgl. {Kasten # 8}) oder auch bildlich: getroffen sein durch einen Liebespfeil (vgl. {Schweikle 2011 # 546}, S. 703).]] d{u^i|iu} liebe nie·, |
| | die d{a|â} n{a|â}ch dem g{u^o|uo}te / #vn#d n{a|â}ch d#er #sch{o^e|œ}ne mi#nnent.[[3 i¬die ... minnent~i ›die ihre Liebe nach Reichtum und Schönheit richten‹ ({Kasten # 8}).]] w{e|ê}, wie mi#nne#nt /#Zdie·? / |
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| E Wa 59 |
| II | |
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| Überlieferung: München, UB, 2° Cod. ms. 731, fol. 171vb |
| | [ini S|1|rot]ie v#erw{i|î}{zz|z}ent[[3 i¬verwîzen~i stV. ›tadelnd vorwerfen‹ (Le III, Sp. 312).]] mir, daz ich |
| | z{#v^o|uo} nid#er / wende[[3 i¬nider wenden~i ›zu etw. Niederem/nach unten hinwenden‹, gemeint ist die niedere Minne; die Dame ist von anderem Stand.]] m{i|î}nen #sanc. |
| | daz #sie niht ver/#sinnen[[3 i¬versinnen~i stV. ›verstehen, sich verstehen auf‹ (Le III, Sp. 230).]] #sich·, |
| | waz liebe #s{i|î}, des[[1 i¬#s{i|î} des~i auf radiertem i¬sie hab~i]] haben / #sie #vndan{g|c}·![[3 i¬undanc haben~i ›verwünscht sein‹ (vgl. Le II, Sp. 1774).]] |
| | #sie getraf[[3 i¬treffen~i stV. hier ›emotional ergreifen‹ (vgl. {Kasten # 8}).]] d{ie|iu} liebe nie, / |
| | die d{a|â} n{a|â}ch dem g{u^o|uo}te #vn#d n{a|â}ch der / #sch{o^e|œ}ne minne#n.[[3 i¬die ... minne#n~i ›die ihre Liebe nach Reichtum und Schönheit richten‹ ({Kasten # 8}).]] w{e|ê}, wie minne#nt die? / |
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| G₁ Namenl 5 |
| II | |
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| Überlieferung: München, BSB, Cgm 5249/74, fol. 1r |
| | [ini S|1|rot]i ver<<w{a|â}{zz|z}ent[[3 i¬verwâzen~i stV. ›verfluchen, verdammen‹ (Le III, Sp. 296).]] mich, daz ich / |
| | #s{o|ô} nider wende[[3 i¬nider wenden~i ›zu etw. Niederem/nach unten hinwenden‹, gemeint ist die niedere Minne; die Dame ist von anderem Stand.]] m{ei|î}ne#n minne #san{ch|c}#·. |
| | dazs[[3 i¬dazs~i = i¬daz si~i.]] {o|ô}t ni{ch|h}t / ver<<#sinne#n[[3 i¬versinnen~i stV. ›verstehen, sich verstehen auf‹ (Le III, Sp. 230).]] #sich#·, |
| | waz lieb #s{ei|î}, des habn[[3 Ergänze: ›sie‹. Zur Nichtbezeichnung des pronominalen Subjekts vgl. h¬25~hMhd. Gramm. § S 110.]] #vndan{ch|c}#·![[3 i¬undanc haben~i ›verwünscht sein‹ (vgl. Le II, Sp. 1774).]] / |
| | #si ge<<traf[[3 i¬treffen~i stV. hier ›emotional ergreifen‹ (vgl. {Kasten # 8}).]] d{i|iu} liebe nie#·, |
| | d{i|ie} d{a|â} n{a|â}ch dem g{#ve|uo}te #vn#d n{a|â}ch / #sch{oe|œ}ne minne#nt#·.[[3 i¬die ... minne#nt~i ›die ihre Liebe nach Reichtum und Schönheit richten‹ ({Kasten # 8}).]] w{e|ê}, w{i|ie} minne#nt d{i|ie}#·? |
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| O₁ Namenl 20 |
| III | |
| III | O₁ Namenl 20 = L 49,31 |
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| Überlieferung: Krakau, Bibl. Jagiellońska, Berol. mgo 682 , fol. 3r |
| | #P %#sie v{u^o|e}r<<w{i|î}zen[[3 i¬verwîzen~i stV. ›tadelnd vorwerfen‹ (Le III, Sp. 312).]] mich, daz ich |
| | tzo nid#ere wende[[3 i¬nider wenden~i ›zu etw. Niederem/nach unten hinwenden‹, gemeint ist die niedere Minne; die Dame ist von anderem Stand.]] m{i|î}nen #sanc. #// |
| | daz / #sie nene v{u^o|e}r<<#sinnen[[3 i¬versinnen~i stV. ›verstehen, sich verstehen auf‹ (Le III, Sp. 230).]] #sich, #/ |
| | waz liebe #s{y|î}, de#s haben #sie #vndanc![[3 i¬undanc haben~i ›verwünscht sein‹ (vgl. Le II, Sp. 1774).]] #// |
| | #sie / {gh|g}e<<traf[[3 i¬treffen~i stV. hier ›emotional ergreifen‹ (vgl. {Kasten # 8}).]] die liebe n{ye|ie}, |
| | die nach dem g{u^o|uo}te #vn#d nach d#er #sch{o|œ}ne / minne_|n_t.[[1=, Konjektur nach ACGt¬1~t]][[3 i¬die ... minne_|n_t~i ›die ihre Liebe nach Reichtum und Schönheit richten‹ ({Kasten # 8}).]] {o|ô}w{e|ê}, wie m{y|i}nnent die? |
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| C Wa 182 (178 [184]) |
| IV | |
| IV | C Wa 182 (178 [184]) = CB 169a; L 51,37 |
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| Überlieferung: Heidelberg, UB, cpg 848, fol. 132vb |
| | [ini R|2|rot]{o|ô}ter m#vnt, wie d#v dich #swache#st#·! / [[1 i¬[ini R|2|rot]~i$ rechter Teil auf Rasur (CB/HS: urspr. i¬N~i?)]] |
| | l{a|â} d{i|î}n lachen #s{i|î}n·. |
| | #scham dich, da{#s|z}_t|_ d#v / mich an lache#st· |
| | n{a|â}ch dem #schaden m{i|î}n##·. / |
| | i#st d#c wol get{a|â}n·? |
| | {o|ô}w{e|ê} #s{o|ô} v#erlorner #stunde·, / [[3 -8 Statt als Konditionalsatz lässt sich V. 7f. auch als eigenständiger Fragesatz auffassen: i¬{o|ô}w{e|ê} #s{o|ô} v#erlorner #stunde·! #sol von minne{k|c}l{i|î}chem m#vnde #solhe #vnminne erg{a|â}n·?~i]] |
| | #sol von minne{k|c}l{i|î}chem m#vnde |
| | #sol{h|ch}e #vn-/%Minne [exp [del gan del] exp] erg{a|â}n·. /[[1i¬#solhe~i$ i¬l~i mit Ansatz zu i¬h~i?]] |
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| S Namenl/22ra 5 |
| V | |
| V | S Namenl/22ra 5 = L 52,7-14 + L 50,11-12 |
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| Überlieferung: Den Haag / 's-Gravenhage, Koninklijke Bibliotheek, Cod. 128 E 2 , fol. 22rb |
| | #P [ini W|1|rub]a{s|z} mich, vrouwe, an vr{u|öu}de#n {y|i}rr#z, / |
| | [ini %D|1|rub]a{s|z} {d|t}{u|uo}t w{e|æ}rel{i|î}ch {#v|iu}re l{ij|î}{b|p}. / |
| | [ini {%Ae|a}|1|rub]n {#v|iu}ch {ey|ei}ner {i|e}{s|z} mich w{y|i}rret, / |
| | [ini %V|1|rub]il {o|u}ngen{e|æ}d{i|e}{ch|c} w{#jj|î}{b|p}. / |
| | [ini %W|1|rub]{a|â} nemt ir den m{u^o|uo}t? / |
| | [ini %J|1|rub]<{a|â}>, #s{ij|î}t ir doch gen{a|â}de#n r{ij|î}che. / |
| | [ini {%D|t}|1|rub]{u^o|uo}t ir {o|u}ngenende{l|cl}{i|î}che, / |
| | [ini %S|1|rub]{o|ô} {z|s}{ij|î}t ir dan ni{ch|h}t g{u^o|uo}t. / |
| | [ini <{%S|z}>|1|rub]art liebe vrouwe m{i|î}n, / |
| | [ini {%S|z}|1|rub]w{a|â}r ich #spriche: ich bin dir holt. / |
| | [ini %#J|1|rub]ch n{e|æ}me d{i|î}n gle{z|s}{i|î}n[[3 i¬glesîn~i Adj. ›aus Glas, gläsern‹ (Le I, Sp. 1032).]] vingerl{i|î}n[[3 i¬vingerlîn~i stN. ›Fingerring‹ (Le III, Sp. 356).]] / |
| | [ini %V|1|rub]or {ey|ei}ner k{ey|ei}#serinne#n golt. / |
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| C Wa 172 (168 [174]) |
| III | |
| III | C Wa 172 (168 [174]) = L 50,7 |
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| Überlieferung: Heidelberg, UB, cpg 848, fol. 132rb |
| | [ini I|2|rot]ch v#ertrage[[3 i¬vertragen~i stV. ›ertragen, erdulden‹ (Le III, Sp. 272).]] als ich v#ertr{u^o|uo}c· |
| | #vn#d iemer / m{e|ê}re wil v#ertrage#n·. |
| | d#v bi#st #sch{o^e|œ}ne #vn#d h{a|â}#st / gen{#v^o|uo}c·.[[3 i¬h{a|â}#st gen{#v^o|uo}c~i kann sich auf i¬#sch{o^e|œ}ne~i (vgl. {Kasten # 8}) oder auf Besitz (vgl. {Bein # 3737}) beziehen.]] |
| | w#c m#vgen #si mir d{a|â} vo#n ge#sagen·? / |
| | #swa{s|z} #si redent, ich bin dir holt· |
| | #vn#d n{e|æ}me / d{i|î}n gle#s{i|î}n[[3 i¬glesîn~i Adj. ›aus Glas, gläsern‹ (Le I, Sp. 1032).]] vingerl{i|î}n[[3 i¬vingerlîn~i stN. ›Fingerring‹ (Le III, Sp. 356).]] f{u^i|ü}r einer k{u^i|ü}nigi#n-/ne golt·. / |
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| C Wa 183 (179 [185]) |
| V | |
| V | C Wa 183 (179 [185]) = L 52,7 |
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| Überlieferung: Heidelberg, UB, cpg 848, fol. 132vb |
| | [ini D|2|rot]a{s|z} mich, fr{ow|ouw}e, an fr{o^ei|öu}de#n irret##·, |
| | d#c i#st / {u^iw|iuw}er l{i|î}p·. |
| | an i#v iemer e{s|z} mir wirre[ho t ho]·, / |
| | #vngen{e|æ}d{i|e}c w{i|î}{b|p}·. |
| | w{a|â} nemt ir den m{#v^o|uo}t·? |
| | ir / #s{i|î}t doch gen{a|â}den r{i|î}che·; |
| | t{#v^o|uo}t ir mir #vnge-/n{e|æ}de{k|c}l{i|î}che·, |
| | #s{o|ô} #sint ir¦niht g{u^o|uo}t·. / |
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| E Wa 61 |
| IV | |
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| Überlieferung: München, UB, 2° Cod. ms. 731, fol. 171vb |
| | [ini I|1|rot]ch vertrage [[3 i¬vertragen~i stV. ›ertragen, erdulden‹ (Le III, Sp. 272).]] als ich v#er/tr{u^o|uo}c· |
| | #vn#d als ich imm#er wil vertrage#n. / |
| | du bi#st #sch{o^e|œ}ne #vn#d h{a|â}#st gen{u^o|uo}c·.[[3 i¬h{a|â}#st gen{u^o|uo}c~i kann sich auf i¬#sch{o^e|œ}ne~i (vgl. {Kasten # 8}) oder auf Besitz (vgl. {Bein # 3737}) beziehen.]] |
| | waz / m{u^e|ü}gen #sie mir d{o|ô} vo#n ge#sagen·? |
| | #swaz / #sie #sagen, ich bin dir holt |
| | #vn#d n{e|æ}me· // d{i|î}n g{u^e|ü}ldin vingerl{i|î}n [[3 i¬vingerlîn~i stN. ›Fingerring‹ (Le III, Sp. 356).]] f{u^e|ü}r ein#er k{u^e|ü}/niginne #solt·. |
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| G₁ Namenl 7 |
| IV | |
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| Überlieferung: München, BSB, Cgm 5249/74, fol. 1v |
| | [ini I|1|rot]ch vertrag[[3 i¬vertragen~i stV. ›ertragen, erdulden‹ (Le III, Sp. 272).]] als ich ver/tr{#ve|uo}{ch|c}#· |
| | #vn#d als ich immer wil ver<<tragn#·. |
| | d#v bi#st / #sch{oe|œ}n #vn#d h{a|â}#st gn{#ve|uo}{ch|c}#·.[[3 i¬h{a|â}#st gn{#ve|uo}{ch|c}~i kann sich auf i¬#sch{oe|œ}n~i (vgl. {Kasten # 8}) oder auf Besitz (vgl. {Bein # 3737}) beziehen.]] |
| | waz m#vgens i{ch|h}t anders von / dir #sagen#·? |
| | ich bin dir von her{tz|z}n holt#· |
| | #vn#d minne / d{ei|î}n gle#s{i|î}n[[3 i¬glesîn~i Adj. ›aus Glas, gläsern‹ (Le I, Sp. 1032).]] vingerl{ei|î}n[[3 i¬vingerlîn~i stN. ›Fingerring‹ (Le III, Sp. 356).]] f{#v|ü}r einer {ch|k}{#v|ü}niginne golt#·. / |
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| O₁ Namenl 19 |
| II | |
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| Überlieferung: Krakau, Bibl. Jagiellońska, Berol. mgo 682 , fol. 3r |
| | #P Ich v{u^o|e}r<<trage[[3 i¬vertragen~i stV. ›ertragen, erdulden‹ (Le III, Sp. 272).]] al#s ich v{u^o|e}r<<tr{u^o|uo}{ch|c}· |
| | #vn#d al#s ich {y|i}mmer wil v{u^o|e}r/tragen. #// |
| | d#v bi#st #sch{o|œ}ne #vn#d h{a|â}#st {gh|g}e<<n{o|uo}{ch|c}.[[3 i¬h{a|â}#st {gh|g}e<<n{o|uo}{ch|c}~i kann sich auf i¬#sch{o|œ}ne~i (vgl. {Kasten # 8}) oder auf Besitz (vgl. {Bein # 3737}) beziehen.]] #/ |
| | waz m{#v^o|u}ge#n #sie mir / d{a|â} von {gh|g}e#sagen? #// |
| | #swaz #sie #sagen, ich bin dir holt |
| | #vn#d n{e|æ}me / d{i|î}n gle#s{e|î}n[[3 i¬glesîn~i Adj. ›aus Glas, gläsern‹ (Le I, Sp. 1032).]] vinger{i|î}n[[3 i¬vinger{i|î}n~i stN. ›Fingerring‹ (BMZ III, Sp. 322a).]] v{u^o|ü}r {ey|ei}ner k#vni{ng|g}{y|i}nnen golt. / |
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| A Leuth 43 |
| I | |
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| Überlieferung: Heidelberg, UB, cpg 357, fol. 38v |
| | [[1 Paragraphenzeichen am Rand (Liedbeginn)]][ini #V|1|rot]ns wil #schiere wol gelingen: / |
| | wir #s#vln #s{i|î}n gemeit, |
| | tanzen, lachen #vn#d #singen |
| | {a|â}ne d{o|ö}rperheit·. |
| | w{e|ê}, wer w{e|æ}/re #vnfr{o|ô}·, [[2 -8 Wa/Co: i¬We, wer wære unfrô? / sît diu vogellîn alsô schône / singent in ir besten dône, / tuon wir ouch alsô!~i ]][[3 -8 Alternativ lässt sich der Nebensatz in V. 6f. auf V. 8 beziehen, vgl. den Text bei Wa/Co.]] |
| | #s{i|î}t d{ie|iu} vogell{i|î}n al#s{o|ô} #sch{o|ô}ne |
| | #schallent mit ir be#sten d{o|ô}ne? |
| | t{#v^o|uo}n / wir {o|ou}ch al#s{o|ô}·! |
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| C Wa 180 (176 [182]) |
| II | |
| II | C Wa 180 (176 [182]) = L 51,21 |
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| Überlieferung: Heidelberg, UB, cpg 848, fol. 132va |
| | [ini #V|2|rot]ns wil #schiere wol gelinge#n·: |
| | wir #s#vln / #s{i|î}n gemeit·, |
| | tanze#n, lache#n #vn#d #singe#n· / |
| | {a|â}ne d{o^e|ö}rperheit·. |
| | w{e|ê}, wer w{e|æ}re #vnfr{o|ô}·, [[2 -8 Wa/Co: i¬We, wer wære unfrô? / sît diu vogellîn alsô schône / singent in ir besten dône, / tuon wir ouch alsô!~i ]][[3 -8 Alternativ lässt sich der Nebensatz in V. 6f. auf V. 8 beziehen, vgl. den Text bei Wa/Co.]] |
| | #s{i|î}t / d{u^i|iu} vogell{i|î}n al#s{o|ô} #sch{o|ô}ne· |
| | #singent in ir / be#sten d{o|ô}ne·? |
| | t{#v^o|uo}n wir {o^v|ou}ch al#s{o|ô}#·! |
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| A Leuth 44 |
| II | |
| |
| Überlieferung: Heidelberg, UB, cpg 357, fol. 38v |
| | [ini M|1|blau]#vg{i|e}t ir #sch{ow|ouw}en, waz dem meien |
| | wunders i#st be#schert? / |
| | #seht an pfaffen, #seht an leien, |
| | wie daz allez vert·. |
| | gr{o|ô}z i#st #s{i|î}n gewalt. |
| | ine / weiz, obe er zo#vber k#vnne: |
| | #swar er vert d#vr #s{i|î}ne wunne, |
| | d{a|â}n i#st niemen / #Zalt·. |
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| C Wa 179 (175 [181]) |
| I | |
| I | C Wa 179 (175 [181]) = L 51,13 |
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| Überlieferung: Heidelberg, UB, cpg 848, fol. 132va |
| | [ini M|2|rot]#vget ir #sch{o^vw|ouw}e#n, wa{s|z} dem m{eig|ei}en· / |
| | wunder#s i#st be#schert·? |
| | #seht an pfaf-/fen, #seht an l{eig|ei}e#n·, |
| | wie d#c alle{s|z} vert·. |
| | gr{o|ô}{#s|z} / i#st #s{i|î}n gewalt·. |
| | in wei{s|z}, ob er z{o^v|ou}ber k#v#n-/ne·: |
| | #swar er vert in #s{i|î}ner wu#nne·, |
| | d{a|â}n i#st / nieman alt·. |
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| A Leuth 45 |
| III | |
| III | A Leuth 45 = CB 151a; L 51,92 |
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| Überlieferung: Heidelberg, UB, cpg 357, fol. 38v |
| | [ini W|2|rot]ol dir, meie, wie d#v #scheides [[3 i¬scheides~i$ Die alte Endung -i¬s~i für die 2. Sg. Präs. bleibt neben der jüngeren Endung -i¬st~i geläufig, s. h¬25~hMhd. Gramm. § M 70, Anm. 6.]] |
| | alle{s|z} {a|â}ne haz, |
| | wie d#v walt #vn#d {ow|ouw}e / {c|k}leides [[3 i¬{c|k}leides~i$ s. Anm. zu V. 1.]] |
| | #vn#d die heide baz·.[[1 Mit Hinweiszeichen markierte Umstellung: i¬#vn#d ⸍⸍heide die⸍⸍ baz~i]] |
| | d{#v^i|iu} h{a|â}t varwe m{e|ê}. |
| | ›d#v bi#st k#vr{c|z}er!‹ – ›ich bin lang#er!‹ / |
| | al#s{o|ô} #str{i|î}ten#s {#v|û}f dem anger: |
| | bl{#v^o|uo}m#en #vn#d {c|k}l{e|ê}·. |
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| C Wa 181 (177 [183]) |
| III | |
| III | C Wa 181 (177 [183]) = L 51,29 |
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| Überlieferung: Heidelberg, UB, cpg 848, fol. 132va |
| | [ini W|2|rot]ol dir, m{eig|ei}e, wie d#v #scheide#st· |
| | alle{s|z} / a^^ne ha{s|z}·, |
| | wie wol d#v die bl{#v^o|uo}me#n [del #schei- del]/[del de#st del] kleide#st· |
| | #vn#d die heide ba{#s|z}·. |
| | d{#v^i|iu} h{a|â}t var-//we m{e|ê}·. |
| | ›d#v bi#st k#vrzer!‹ – ›ich bin langer·!‹ / |
| | al#se #str{i|î}tent #si {#v|û}f de_n|m_ anger·: |
| | bl{#v^o|uo}me#n #vn#d / #Zkl{e|ê}·. |
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| A Leuth 46 |
| IV | |
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| Überlieferung: Heidelberg, UB, cpg 357, fol. 38v |
| | [ini S|1|blau]cheidet, vr{ow|ouw}e, mich von #sor/gen, |
| | liebet mir daz z{i|î}t·, |
| | oder ich m{#v^o|uo}z vr{oi|öu}de borgen. |
| | daz ir #s{e|æ}l{i|e}c #s{i|î}t! |
| | m{#v^o|u}/g{i|e}t ir #vmbe #sehen? |
| | ir vr{oi|öu}t al die welt gemeine. |
| | m{o|ö}hte mir von {#v|iu}{ch|}[[3 i¬{#v|iu}{ch|}~i$ Die Akk.-Form i¬iuch~i tritt zuerst im Md., ab dem 14. Jh. in fast allen Landschaftssprachen neben oder an die Stelle der alten Dat.-Form i¬iu~i, vgl. h¬25~hMhd. Gramm. § M 40; Gramm. d. Fnhd. VII, § 7.3.]] / ein {c|k}leine |
| | vr{oi|öu}del{i|î}n ge#sch{e|ê}n·? |
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| C Wa 184 (180 [186]) |
| VI | |
| VI | C Wa 184 (180 [186]) = L 52,15 |
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| Überlieferung: Heidelberg, UB, cpg 848, fol. 132vb |
| | [ini S|2|rot]cheident, fr{ow|ouw}e, mich vo#n #sorgen#·, |
| | lie-/bet mir die z{i|î}t#·, |
| | oder ich m{#v^o|uo}{s|z} an¦fr{o^ei|öu}/den borgen#·. |
| | d#c ir #s{e|æ}l{i|e}c #s{i|î}t·! |
| | m#vget ir #vmbe / #sehen·? |
| | #sich fr{o^ei|öu}t al d{#v^i|iu} welt gemeine·. |
| | m{o^e|ö}h-/te mir ein vil kleine· |
| | fr{o^ei|öu}del{i|î}n ge#schehe#n#·? |
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| C Wa 173 (169 [175]) |
| IV | |
| IV | C Wa 173 (169 [175]) = L 50,1 |
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| Überlieferung: Heidelberg, UB, cpg 848, fol. 132rb |
| | [ini B|2|rot]{i|î} der #sch{o^e|œ}ne i#st di{k|ck}e ha{s|z}·. |
| | ze der #sch{o^e|œ}-/ne niema#n #s{i|î} ze>>g{a|â}ch·.[[3 Wohl: ›Der Schönheit sei niemand zu voreilig zugeneigt.‹]] |
| | liebe t{u^o|uo}t dem // herzen ba{s|z}·. |
| | d{u^i|iu} #sch{o^e|œ}ne g{a|â}t d#er liebe n{a|â}ch·.[[3 i¬nâch gân~i kann in diesem Kontext entweder ›nachfolgen‹ i. S. v. ›unter- bzw. nachgeordnet sein‹ oder ›folgen aus‹ bedeuten (vgl. {Schweikle 2011 # 546}, S. 703).]] / |
| | liebe machet #sch{o^e|œ}ne w{i|î}{b|p}·. |
| | des enmac d{u^i|iu} / #sch{o^e|œ}ne niht get{u^o|uo}n: #si machet niemer lie/ben l{i|î}{b|p}·. / |
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| E Wa 60 |
| III | |
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| Überlieferung: München, UB, 2° Cod. ms. 731, fol. 171vb |
| | [ini B|1|rot]{i|î} der #sch{o^e|œ}ne i#st dicke haz·. |
| | d{u^e|iu} liebe / g{e|ê}t der #sch{o^e|œ}ne n{a|â}ch·.[[3 i¬nâch gân~i hier ›nachfolgen‹ i. S. v. ›unter- bzw. nachgeordnet sein‹ oder ›folgen aus‹ (vgl. {Schweikle 2011 # 546}, S. 703).]] |
| | her{tz|z}e<<liebe t{u|iu}ret / baz. |
| | nieman #s{i|î} z{#v^o|uo} #sch{o^e|œ}ne g{a|â}ch·,[[3 Wohl: ›Der Schönheit sei niemand zu voreilig zugeneigt.‹]] |
| | liep [[1 ›Punkte-Blümchen‹ nach i¬liep~i, zusammen mit der bogenförmigen Zierlinie am rechten Rand wohl zur Markierung der Versvertauschung im Aufgesang]] / machet #sch{o^e|œ}ne w{i|î}p·; |
| | des mac d{ie|iu} #sch/{o^e|œ}ne niht get{u^o|uo}n: #sie machet nimm#er / lieben l{i|î}p·. |
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| G₁ Namenl 6 |
| III | |
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| Überlieferung: München, BSB, Cgm 5249/74, fol. 1r |
| | [ini B|1|rot]{ei|î} der #sch{oe|œ}n / i#st dicke haz#·. |
| | z{#v|uo} der #sch{oe|œ}n #s{ei|î} niem ze>>g{a|â}ch#·.[[3 Wohl: ›Der Schönheit sei niemand zu voreilig zugeneigt.‹]] |
| | #i{a|â}, ge/velle#st d#v mir baz#·. |
| | d{i|iu} #sch{o|œ}ne g{e|ê}t der liebe n{a|â}ch#·.[[3 i¬nâch gân~i kann in diesem Kontext entweder ›nachfolgen‹ i. S. v. ›unter- bzw. nachgeordnet sein‹ oder ›folgen aus‹ bedeuten (vgl. {Schweikle 2011 # 546}, S. 703).]] |
| | liebe / machet #sch{o|ô}ne w{ei|î}p#·. |
| | des ma{ch|c} d{i|ie} #sch{oe|œ}ne ni{ch|h}t g{e|ê}//t{#v|uo}n#·: #si machet #selten[[3 i¬selten~i Adj., wenn nicht ein Adj. oder Artikel fehlt (vgl. die anderen Zeugen), oder Adv. ›nie‹ und i¬machet~i hier ›auszeichnen‹ o. Ä. Oder i¬l{ei|î}p~i meint hier allgemein und abstrakt ›Person, Persönlichkeit‹, dann i¬machen~i auch ›ausmachen‹.]] l{ei|î}p·. |
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| O₁ Namenl 21 |
| IV | |
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| Überlieferung: Krakau, Bibl. Jagiellońska, Berol. mgo 682 , fol. 3r |
| | #P %b{i|î} der #sch{o|œ}ne i#st dicke haz. #/ |
| | der liebe g{e|ê}t d_er|iu_[[1=, Konjektur nach ACGt¬1~t]][[3 Hsl. i¬der~i ist wohl eine Verschreibung aufgrund des i¬der~i am Versbeginn, wenn nicht irregulär Mask. oder Dat. wie Hs. E; in diesem Falle wäre am Versbeginn zu konjizieren. Dass eine Person gemeint ist (›der Schöne‹), erscheint unplausibel.]] #sch{o|œ}ne n{a|â}ch.[[3 i¬nâch gân~i kann in diesem Kontext entweder ›nachfolgen‹ i. S. v. ›unter- bzw. nachgeordnet sein‹ oder ›folgen aus‹ bedeuten (vgl. {Schweikle 2011 # 546}, S. 703).]] #// / |
| | h#er{tz|z}eliebe t{i#v|iu}ret baz, |
| | {tz|z}{o|e}r #sch{o|œ}ne n{y|i}eman #s{i|î} {tz|z}{o|uo} g{a|â}ch,[[3 Wohl: ›Der Schönheit sei niemand zu voreilig zugeneigt.‹]] #// |
| | liebe machet #sch{o|œ}ne w{i|î}p; #/ |
| | de#s ne<<mach die #sch{o|ô}ne ni{ch|h}t ghe<<tu^on: #/ / #sie ne<<machet n{y|i}mmer lieben l{i|î}p. |
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| C Wa 174 (170 [176]) |
| V | |
| V | C Wa 174 (170 [176]) = L 50,13 |
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| Überlieferung: Heidelberg, UB, cpg 848, fol. 132va |
| | [ini H|2|rot]{a|â}#st d#v tr{u^iw|iuw}e #vn#d #st{e|æ}te{k|ch}eit·, |
| | #s{o|ô} bin ich / des {a|â}n ange#st gar·, |
| | d#c mir iemer[[3 i¬immer~i Adv. ›jemals wieder‹ (Le I, Sp. 1415).]] h#erze-/leit· |
| | vo#n d{i|î}ne#n #schulde#n wider var·. |
| | h{a|â}#st aber / d#v der zweier niht·, |
| | #s{o|ô}ne m{#v^e|üe}{#s#s|z}e#st d#v mir / niemer w#erden. {o|ô}w{e|ê} danne, ob d#c ge#schiht·! / |
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| E Wa 62 |
| V | |
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| Überlieferung: München, UB, 2° Cod. ms. 731, fol. 172ra |
| | [ini H|1|rot]{a|â}#stu tr{u^ew|iuw}e· #vn#d / #st{e|æ}t{i|e}{k|ch}eit·, |
| | #s{o|ô} bin ich {o|â}n ange#st gar·, / |
| | daz mir immer[[3 i¬immer~i Adv. ›jemals wieder‹ (Le I, Sp. 1415).]] her{tz|z}eleit |
| | mit d{i|î}/nem willen wider<<var·. |
| | h{a|â}#stu aber / der zweier niht·, |
| | #s{o|ô} m{u^o|uo}#stu nimm#er / werden m{i|î}n·. {o|ô}w{e|ê} denne, ob daz ge/#schiht! |
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| G₁ Namenl 8 |
| V | |
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| Überlieferung: München, BSB, Cgm 5249/74, fol. 1v |
| | [ini H|1|rot]{a|â}#st {t|d}#v tr{ew|iuw} #vn#d #st#aet{i|e}ch{ai|ei}t#·, |
| | #s{o|ô} bin ich des {o|â}n ange#st / gar#·, |
| | daz mir immer[[3 i¬immer~i Adv. ›jemals wieder‹ (Le I, Sp. 1415).]] her{tz|z}nl{ai|ei}t#·[[3 i¬her{tz|z}nl{ai|ei}t~i ist eine frnd. Form (FWB, s. v. i¬herzeleid~i; DWb X, Sp. 1229).]] |
| | von d{ei|î}ne#n #sch#vld{i|e}n / wider<<var#·. |
| | h{a|â}#st aber d#v d#er zw{ai|ei}er ni{ch|h}t#·, |
| | #s{o|ô}n m{#ve|üe}{z/z|s}e#st d#v nimm#er werden [sup [rub m{ei|î}n rub] sup]#·[[1 i¬mein~i$ über der Zeile in roter Tinte nachgetragen]]. {o|ô}w{e|ê} des, ob daz ge#schiht#·! / |
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| O₁ Namenl 22 |
| V | |
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| Überlieferung: Krakau, Bibl. Jagiellońska, Berol. mgo 682 , fol. 3r |
| | %h{a|â}#stu tr{#vw|iuw}e #vn#d #st{e|æ}t{i|e}cheit, #/ |
| | #s{o|ô} bin ich d{i|î}n {a|â}n ange#st gar, #// |
| | daz / mir n{y|i}mmer h#erzeleit |
| | mit d{i|î}nen willen wider<<var. #// |
| | ne<<ha#stu ab#er / d#er {tz|z}w{ie|eie}r ni{ch|h}t, |
| | #s{o|ô} m{#v^o|üe}{z|s}e#s d#v n{y|i}mmer w#erde#n m{i|î}n. {o|ô}w{e|ê} dan, ob daz g_[def ... def]|e_/#Z#sch{ie|i}_[def ... def]|ht_![[1=, Konjektur nach den anderen Zeugen]] / |
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