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| A Wa 18 |
| I | |
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| Überlieferung: Heidelberg, UB, cpg 357, fol. 6r |
| | [ini I|1|blau]ch fr{e#v|öu}de<<helfel{o|ô}_r|_#ser[[1=, Konjektur nach CE]] man·,[[1 Paragraphenzeichen am Rand (Liedbeginn)]] |
| | war #vmbe / mac_|h_[[1=, Konjektur nach Ef]] ich m{e|a}negen vr{o|ô}·, |
| | d#er mir e{z|s} niht gedanken kan? |
| | {o|ô}w{e|ê}, wie t{#v^o|uo}nt die fri#vn/de #s{o|ô}? |
| | #i{a|â} fri#vnt, w#c ich vo#n fri#vnden [mut iach mut][ins #sage ins][[1 i¬#sage~i gebessert aus i¬iach~i]]! |
| | het ich dekeinen, d#er vern{e|æ}me {o|ou}ch / m{i|î}ne {c|k}lage. |
| | n#v enh{a|â}n ich fri#vnt, n#v enh{a|â}n ich r{a|â}t·. |
| | des·[[2 i¬des~i$ getilgt Wa/Bei]][[1 Möglicherweise ist i¬des~i – ohne dass der hsl. Befund eindeutig wäre – durch die rahmenden (Reim-?)Punkte expungiert. Dieses Verständnis legt offenbar Wa/Bei zugrunde, der im kritischen Text nach A auf i¬des~i verzichtet.]] n#v t{#v^o|uo} mir, #swie d#v / welle#st, minnecl{i|î}ch{#v^i|iu} %minne, |
| | #s{i|î}t· nieman m{i|î}n gn{a|â}de h{a|â}t·. |
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| C Wa 206 (202 [209]) |
| VI | |
| VI | C Wa 206 (202 [209]) = L 54,37 |
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| Überlieferung: Heidelberg, UB, cpg 848, fol. 133va |
| | [[1 Durch Verweiszeichen i¬A~i am Seitenrand den Strophen C Wa 195–199 zugeordnet]][ini I|2|blau-rot]ch fr{o^ei|öu}dehelfel{o|ô}#ser man·, |
| | war#vmbe † man{i|e}-/ge#n fr{o|ô}·, |
| | der mir es niht geda#nken kan·? |
| | {o|ô}w{e|ê}, / wie t{#v^o|uo}nt die fr{u^i|iu}nde #s{o|ô}·? |
| | #i{a|â} vr{u^i|iu}nt, w#c ich / vo#n fr{u^i|iu}nde #sage·! |
| | het ich dekeine#n, d#er v#ern{e|æ}me / {o^v|ou}ch m{i|î}ne klage·. |
| | n#v'n h{a|â}#n ich fr{u^i|iu}nt, n#v'n / h{a|â}n ich r{a|â}t·. |
| | n#v t{#v^o|uo} mir, #swie d#v welle#st, / mi#nne{k|c}l{i|î}ch{e|iu} %mi#nne, |
| | #s{i|î}t niema#n m{i|î}n ge-/n{a|â}de h{a|â}t·. / |
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| E Wa 152 |
| I | |
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| Überlieferung: München, UB, 2° Cod. ms. 731, fol. 177ra |
| | [ini I|2|rot]ch fr{au|öu}de<<helfel{o|ô}#ser man·, |
| | war / {#v^e|u}{mm|mb}e mache ich man{i|e}gen fr{o|ô}·, / |
| | der mir doch niht gehelfen kan?¦ |
| | {o|ô}w{e|ê}, / wie t{u^o|uo}nt die l{u^e|iu}te al#s{o|ô}·? |
| | #i{o|ô} fr{auw|öuw}e ich / mich der fr{u^e|iu}nde m{i|î}n·! |
| | hete ich dekei/nen, der vern{e|æ}me m{i|î}ne {c|k}lage·. |
| | nu h{a|â}#n / ich hilfe, n#v h{a|â}n ich r{a|â}t·. |
| | n#v t{u^o|uo} mir, / #swaz du w{o^e|o}lle#st, minnecl{i|î}ch{e|iu} %minne, / |
| | #s{i|î}t nieman m{i|î}n gen{a|â}de h{a|â}t·. |
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| f Namenl/101r 18 |
| I | |
| I | f Namenl/101r 18 = L 54,37 |
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| Überlieferung: Weimar, Herzogin Anna Amalia Bibl., Cod. Quart 564 , fol. 103r |
| | #Jch fr{ew^:|öuw}e dich, h{i|e}l{ff|f}e<<lo#ser man. |
| | warumbe mach ich mangn#n / fr{o|ô}, / |
| | %Der mir h{o|ô}ch ni{ch|h}t gedan{ck|k}en kan? |
| | {a|â}w{e|ê}, wie {th|t}{u|uo}_|n_t[[1=, Konjektur nach ACE]] / die fr{eu|iu}#n{d|t} al#s{o|ô}? / |
| | %J{a|â} fr{eu|iu}nt, da{s|z} von fr{eu|iu}nden #sage·: |
| | het ich der eine_|n_, / vern{y|i}m meine {c|k}lage. |
| | nun‡[[3 i¬nun~i = i¬nu en-~i.]] hil{ff|f}e ich, enh{a|â}n ich r{a|â}t. / |
| | nu{n|} {th|t}{u|uo} mir, wa{s|z} du welle#st, m{y|i}nn{i|e}{g|c}l{ei|î}ch{e|iu} %m{y|i}nne – / |
| | fr{eu|iu}nde, fr{eu|iu}ndes fr{eu|iu}nde? –, / %S{ei|i}nt n{y|ie}man{#nt|} nu{e|} gen{a|â}de _|h{a|â}t_[[1=, Konjektur nach ACE. In f steht ein solches i¬hat~i ebenfalls noch in derselben Zeile, allerdings erst nach i¬teylet #vme mich~i (siehe die Folgestr. f Namenl/101r 19). Die Abteilung der Strn. ist hier sichtlich gestört, was wohl auch mit dem etymologischen Spiel mit ›Freund‹ zusammenhängt: Nach diesem setzt der Schreiber die Str. ab, der eigentliche Strn.-Schluss bildet nun den Anfang der folgenden Str. und der eigentliche Anfang der folgende Str. ist in das (visuelle) Versinnere verschoben.]]. |
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| A Wa 19 |
| II | |
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| Überlieferung: Heidelberg, UB, cpg 357, fol. 6r |
| | [ini V|1|rot]il minnecl{i|î}ch{#v^i|iu} / %minne, ich h{a|â}n |
| | verlorn vo#n dir m{i|î}nen #sin·. |
| | d#v wilt gewaltecl{i|î}chen g{a|â}n· // |
| | in m{i|î}nem h#erzen {#v|û}z #vn#d in·. |
| | wie k#vnde ich {a|â}ne #sin gene#s{i|e}n? |
| | d#v wone#st an #s{i|î}ner #st{a|â}t·, / dar inne #solt#v we#sen·. |
| | d#v #sende#st in, d#v wei#st wol war·. |
| | d#c mac er leid#er niht· er/werben·, fr{o|ou} %minne, |
| | ir #soltent #selbe dar·. |
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| C Wa 196 (192 [198]) |
| II | |
| II | C Wa 196 (192 [198]) = L 55,8 |
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| Überlieferung: Heidelberg, UB, cpg 848, fol. 133rb |
| | [ini V|2|blau]il mi#nne{k|c}l{i|î}ch{e|iu} %minne, ich h{a|â}n· |
| | vo#n dir v#er-/lorn m{i|î}ne#n #sin·. |
| | d#v wilt gewalte{k|c}l{i|î}che#n / g{a|â}n· |
| | in m{i|î}nem h#erzen {#v|û}{s|z} #vn#d in#·. |
| | wie #sol ich / {a|â}ne #sin gene#sen·? |
| | d#v wone#st iemer, d{a|â} er / inne #solte we#sen·. |
| | d#v #sende#st in, d#v wei#st / wol war·. |
| | d{a|â} ma{g|c} er leider alter#seine[[3 i¬alterseine~i Adj. ›ganz allein‹ (Le I, Sp. 44).]] / niht erwerben·, |
| | {o|ô}w{e|ê}, d#v #solte#st #selber· / dar#·. / |
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| E Wa 153 |
| II | |
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| Überlieferung: München, UB, 2° Cod. ms. 731, fol. 177ra |
| | [ini V|1|rot]il mi#n/necl{i|î}ch{e|iu} %minne[[1 i¬minne~i$ Die hsl. Schreibung hat einen Schaft zu viel]], ich h{a|â}n· |
| | von dir ver/lorn m{i|î}ne#n #sin·. |
| | du wilt gewalt{i|e}cl{i|î}che#n / g{a|â}n· |
| | in m{i|î}me her{tz|z}en {#v|û}z #vn#d in·. |
| | wie / mac ich {a|â}ne #sin gene#sen·? |
| | du wone#st / an>>der #st{a|â}t, d{o|ô} #sie inne #solte we#sen·, |
| | #vn#d / #sende#st in, du wei#st wol war·. |
| | du en/maht ir niht erwerben eine·, fr{au/w|ouw}e %minne, |
| | ich w{e|æ}ne, du #solte#st #selbe / dar·. |
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| f Namenl/101r 24 |
| I | |
| I | f Namenl/101r 24 = L 55,8 |
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| Überlieferung: Weimar, Herzogin Anna Amalia Bibl., Cod. Quart 564 , fol. 103v |
| | M{y|i}nn{i|e}{g|c}l{i|î}ch{e|iu} %m{y|i}nne, %#Jch h{a|â}n |
| | durch dich #uerlorn#n / m{ei|î}nen #s{y|i}n. / |
| | %Du wilt gewalt{i|e}{g|c}l{i|î}chen g{a|â}n |
| | %#J_nne|n_ m{ei|î}ne#m / her{tz|z}n#n {au|û}{ß|z} #vnd {ei|i}n. / |
| | %Wie mo{ch|h}t %#Jch {a|â}ne #sin gene#sen·? |
| | du wone#st / an #s{ei|î}ner #st{a|â}t, al d{o|ô} er %#Jnne #solte we#sen, / |
| | #vn#d #sende#st in, du w{ey|ei}#st wol w{o|ar}. |
| | d_u|az_[[1=, Konjektur nach A]] nu#n‡ [[3 Die Partikel i¬nun~i kann im Frühnhd. ›nur‹ oder ›nun‹ bedeuten. Sie steht hier an einer Stelle, wo E die Negationspartikel i¬en-~i setzt, die im 15. Jh. nicht mehr geläufig war.]]// ma{g|c} ich l{ey|ei}der ni{ch|h}t erwerben, fr{aw|ouw}e m{ei|î}n_e|_, |
| | du #solte#st / #selber _%J|d_{o|ar}. / |
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| A Wa 20 |
| III | |
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| Überlieferung: Heidelberg, UB, cpg 357, fol. 6v |
| | [ini G|1|rot]n{a|â}de, fr{ow|ouw}e %minne, ich wil |
| | dir #vmbe di#se / bot#schaft |
| | gev{u^o|üe}gen d{i|î}nes willen vil·. |
| | wis wider mich n#v t_#v^i|u_genthaft_er|_[[1=, Konjektur nach CE zur Herstellung des Reims]][[??? Reimkonjektur]]. |
| | ir h#erze / i#st reht#er fr{oi|öu}den vol, |
| | mit l{#v^i|û}terl{i|î}cher reinecheit gezieret wol. |
| | er<<dringe#st d#v / d{a|â} d{i|î}ne #st{a|â}t, |
| | #s{o|ô} l{a|â} mich in, daz wir #si mit ein ander #sprechen.[[3 i¬sprechen~i stV. trans. mit Akk. d. Pers. ›mit einem reden‹ (Le II, Sp. 1112).]] |
| | mir mi#s#se<<gie, / d{o|ô} ich ez eine bat·. |
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| C Wa 197 (193 [199]) |
| III | |
| III | C Wa 197 (193 [199]) = L 55,17 |
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| Überlieferung: Heidelberg, UB, cpg 848, fol. 133rb |
| | [ini V|2|blau]il mi#nne{k|c}l{i|î}ch{e|iu} %minne, ich wil· |
| | dir #vm-/be di#se bo{tt|t}e#schaft· |
| | noch f{u^e|üe}ge#n d{i|î}ne#s / willen vil·. |
| | wi#s wider mich n#v t#vgenthaf[ho t ho]·. / |
| | d{i|î}n l{i|î}{b|p} i#st reiner t#vgende vol·, |
| | mit l{u|û}ter/l{i|î}cher reine{k|ch}eit get{u^i|iu}ret wol·. |
| | gebringe#st / d#v'{s|z} an d{i|î}ne #st{a|â}t·, |
| | #s{o|ô} l{a|â} mich in, da{#s|z} wir / #si mit ein ander ge#spreche#n·.[[3 i¬gesprechen~i stV. trans. mit Akk. d. Pers. ›ansprechen‹ (Le I, Sp. 924).]] |
| | mir mi#s#se<<gie, / d{o|ô} ich'{s|z} eine bat·. / |
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| E Wa 154 |
| III | |
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| Überlieferung: München, UB, 2° Cod. ms. 731, fol. 177ra |
| | [ini G|1|rot]en{a|â}de, fr{auw|ouw}e %minne, ich v{u^e|üe}/ge |
| | {#v^e|u}{mm|mb}e di#se bot#schaft· |
| | d{i|î}nes wil/len vil·. |
| | wis wider mich #s{o|ô} tugentha/ft·. |
| | ir her{tz|z}e i#st rehter g{u^e|üe}te vol·, |
| | mit / l{u|û}ter rein{i|e}{k|ch}eit gezieret wol·. |
| | _g|_e_|r_d_|r_in/ge#stu[[1=, Konjektur nach A]] d{a|â} d{i|î}ne #st{a|â}t·, |
| | #s{o|ô} l{a|â} mich in, daz / wir _|si_[[1=, Konjektur nach AC]] mit ein<<ander ge#sprechen·.[[3 i¬gesprechen~i stV. trans. mit Akk. d. Pers. ›ansprechen‹ (Le I, Sp. 924).]] |
| | mir / mi#s#se<<gie, d{o|ô} ich eine bat·. |
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| A Wa 21 |
| IV | |
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| Überlieferung: Heidelberg, UB, cpg 357, fol. 6v |
| | [ini G|1|blau]nedecl{i|î}chi#v %minne, l{a|â}·. |
| | {o|ô}w{e|ê}, we#s t{#v^o|uo}#st d#v mir #s{o|ô} w{e|ê}·? |
| | n#v / twinge#st {o|ou}ch d{a|â}· – |
| | #vn#d #sich, w{a|â} ez dir wid#er<<#st{e|ê}·. |
| | n#v wil ich #sehen, obe d#v noch t_#v^o|{#v^i|ü}_ge#st. / |
| | d#v endarf_|t_ niht #iehen·, d#c d#v in ir h#erze_n|_ m_#v^o|{#v^i|ü}_ge#st. |
| | ez wart nie #sl{o|ô}z #s{o|ô} m{e|a}necvalt, / |
| | d#c eh_|t_ dir wid#er<<#st{#v^e|üe}nde, die{p|b}_|e_ aller mein#sterinne. |
| | t{#v^o|uo}n {#v|û}f, #si#st[[3 i¬#si#st~i = i¬si ist~i.]] wid#er dich ze>>balt.[[3 i¬balt~i Adj. ›kühn‹ (Le I, Sp 117).]] / |
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| C Wa 195 (191 [197]) |
| I | |
| I | C Wa 195 (191 [197]) = L 55,26 |
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| Überlieferung: Heidelberg, UB, cpg 848, fol. 133ra |
| | [ini #U|2|blau]il mi#nne{k|c}l{i|î}ch{u^i|iu} %minne, l{a|â}·. |
| | war #vmbe / t{#v^o|uo}#st d#v mir #s{o|ô} w{e|ê}·? |
| | d#v twinge#st hie, / n#v twinge {o^v|ou}ch d{a|â}·. |
| | v#er#s{#v^o|uo}che,[[3 i¬versuochen~i swV. ›auf die Probe stellen‹ (Le III, Sp. 259).]] wer dir wid#er//#st{e|ê}·. |
| | n#v l{a|â} #sch{o^vw|ouw}e#n, ob d#v iht t{u^i|ü}ge#st·. |
| | d#v darft / niht #iehen, d#c d#v in ir h#erze m{#v^i|ü}ge#st·. |
| | e{s|z} wart / nie #sl{o|ô}{s|z} #s{o|ô} man{i|e}cvalt·, |
| | d#c vor dir ge#st{#v^e|üe}nde, / d#v liebe mei#st#erinne·. |
| | #sl{u^i|iu}{s|z} {#v|û}f, #si#st[[3 i¬#si#st~i = i¬si ist~i.]] wider dich / ze>>balt#·.[[3 i¬balt~i Adj. ›kühn‹ (Le I, Sp 117).]] / |
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| E Wa 155 |
| IV | |
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| Überlieferung: München, UB, 2° Cod. ms. 731, fol. 177ra |
| | [ini G|1|rot]n{a|â}de<<r{i|î}c/h{e|iu} %minne, l{a|â}·. |
| | war {#v^e|u}{mm|mb}e t{u^o|uo}#stu mir / #s{o|ô} w{e|ê}·? |
| | du twinge#st hie – #vn#d twinge / {au|ou}ch d{a|â}·. |
| | ver#s{u^o|uo}che,[[3 i¬versuochen~i swV. ›auf die Probe stellen‹ (Le III, Sp. 259).]] wer dir wider/#st{e|ê}·. |
| | d{a|â} wil ich #sch{ow|ouw}en, ob du t{u^e|ü}ge#st. / |
| | du'n darft niht #sagen, daz du in ir her/ze niht en<<m{u^e|ü}ge#st. |
| | ez'n wart nie #sl{o|ô}z / #s{o|ô} man{i|e}cvalt·, |
| | du diebe mei#st#erinne·, // daz vor dir be#st{u^e|üe}nde·. |
| | r{u^e|ü}ne {#v|û}f,[[3 i¬ûf rünen~i swV. ›zusammenhäufen‹ (Le II, Sp. 538); der Zusammenhang ist unklar, vgl. die Lesarten der Parallelüberlieferung.]] #sie i#st / wider dich ze>>balt·.[[3 i¬balt~i Adj. ›kühn‹ (Le I, Sp 117).]] |
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| f Namenl/101r 25 |
| II | |
| II | f Namenl/101r 25 = L 55,26 |
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| Überlieferung: Weimar, Herzogin Anna Amalia Bibl., Cod. Quart 564 , fol. 104r |
| | M{y|i}nn{i|e}{g|c}l{i|î}che, |
| | w{o|a}rumbe t{u|uo}#stu mir #s{o|ô} w{ee|ê}? |
| | du {z|t}winge#st / hie #vnd {z|t}winge#st / %{Au|Ou}ch d_u|{o|ô}_, |
| | #vnd #sich, wa{s|z} dir wieder<<#st{ee|ê}·. |
| | #s{o|ô} ma{g|c} man / #sch{aw|ouw}en, ob du t_rin|{u|ü}_ge#st.[[1=, Konjektur nach CE zur Herstellung des Reims]][[??? Reimkonjektur]] / |
| | %Nu_e|_ _dar du|_ dar{ff|f}t ni{ch|h}t #sprechen, da{s|z} du in %#Jr / her{tz|z}e_n|_ n{y|i}e ni{ch|h}t m{u|ü}ge#st·. |
| | e{s|z} enwart n{y|i}e #sl{o|ô}{ß|z}· #s{o|ô} ma=/n{i|e}_|c_falt·,[[1=, Konjektur nach ACE]] |
| | da{s|z} vor dir %#J[mut r mut][ins e ins] be#st{u|üe}nde. |
| | † {au|û}f die e{s|z} w{ie|i}der>>z{u|uo}>>palt †/ |
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| B Wa 83 |
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| Überlieferung: Stuttgart, LB, HB XIII 1, pag. 162 |
| | [ini D|1|blau]{#v^i|iu} #s{##e|æ}lde t{ai|ei}let #vmbe mich·[[3 i¬teilet umbe mich~i ›teilt rings um mich aus‹ (vgl. Le II, Sp. 1725).]] |
| | #vn#d k{e|ê}ret mir de#n / r#vggen z{#v^o|uo}·. |
| | d{a|â} enkan #si niht erbarmen #sich·. / |
| | n#v r{a|â}tent, fr{#v^i|iu}nt, wa{s|z} ich es t{#v^o|uo}·! |
| | #si #st{e|ê}t #vng#erne / g{e|ê}n mir·. |
| | l{o^v|ou}fe ich hin #vmbe, ich bin doch iem#er / hinder ir·: |
| | #si ger{#v^o|uo}chet mich niht ane>>#sehen·. // |
| | ich wolte, da{s|z} ir {o^v|ou}ge an ir n##e{k|ck}el[[3 i¬neckel~i = i¬neckelîn~i, Diminutiv zu i¬nac~i stM. ›Nacken‹ (Le II, Sp. 3).]] #st{#v^e|üe}nde·, |
| | #s{o|ô} m{#v^e|üe}#st e{s|z} {a|â}n / ir dan{k|c} ge#s[sup ch sup]ehen·. / |
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| A Wa 22 |
| V | |
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| Überlieferung: Heidelberg, UB, cpg 357, fol. 6v |
| | [ini V|1|rot]r{o|ou} %#s{e|æ}lde teilet #vmbe #sich·[[3 i¬teilet umbe sich~i ›teilt rings um sich aus‹ (Le II, Sp. 1725).]] |
| | #vn#d k{e|ê}ret mir den r#vggen z{#v^o|uo}. |
| | n#v en<<wil #si niht / erbarme#n mich·, |
| | waz welt ir, d#c ich des n#v t{#v^o|uo}·? |
| | #si #st{e|ê}t #vngerne gegen mir·. |
| | lo#vf / ich hin #vmbe, ich bin doch iem#er hinder ir·: |
| | #si wil mich niht an ge#sehen·. |
| | ich wol/te, d#c ir o#vgen an ir na{kk|ck}e #st{#v^o|üe}nden·, |
| | #s{o|ô} m{#v^o|uo}#st ez {a|â}ne ir danc ge#schehen·. / |
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| C Wa 198 (194 [200]) |
| IV | |
| IV | C Wa 198 (194 [200]) = L 55,35 |
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| Überlieferung: Heidelberg, UB, cpg 848, fol. 133rb |
| | [ini V|2|blau]r{o|ou}[[1 Die Lombarde (i¬V~i) entspricht nicht der Vorschreibung (i¬F~i)]] %#s{e|æ}lde teilet #vmbe #sich·,[[3 i¬teilet umbe sich~i ›teilt rings um sich aus‹ (Le II, Sp. 1725).]] |
| | #si k{e|ê}ret mir / den rugge z{#v^o|uo}·. |
| | d{a|â} enkan #si niht er-/barmen #sich##·, |
| | i'n wei{s|z}, wa{s|z} ich dar #vmbe / t{u^o|uo}·. |
| | #si #st{e|ê}t #vngerne gegen mir·. |
| | g{e|ê}n %Ich[[1 i¬%Ich~i$ i¬%I~i gebessert?]] / hin f{u^i|ü}r, ich bin doch iemer hinder ir·: [exp [del w del] exp] / |
| | #sine r{u^o|uo}chet[[1 i¬#sine r{u^o|uo}chet~i$ auf Rasur?]] mich niht ane #sehen·. |
| | ich / wolte, d#c ir {o^v|ou}ge an[[1 i¬an~i$ i¬a~i gebessert]] ir ne{k|ck}el[[3 i¬neckel~i = i¬neckelîn~i, Diminutiv zu i¬nac~i stM. ›Nacken‹ (Le II, Sp. 3).]] #st{#v^e|üe}nde·, |
| | #s{o|ô} / m{#v^e|üe}#st e{s|z} {a|â}ne ir danc ge#sche[exp he exp]he#n#·. / |
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| E Wa 156 |
| V | |
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| Überlieferung: München, UB, 2° Cod. ms. 731, fol. 177rb |
| | [ini D|1|rot]{#v^e|iu} #s{e|æ}lde teilet / {#v^e|u}{mm|mb}e [exp #sich exp] mich·[[3 i¬teilet umbe mich~i ›teilt rings um mich aus‹ (vgl. Le II, Sp. 1725).]] |
| | #vn#d k{e|ê}ret mir den / r{u^e|ü}cke· z{#v^o|uo}·. |
| | du kan#st {au|ou}ch niht erbar/men dich·, |
| | ich'n weiz, waz ich d{o|a}r {#v^e|u}{m/m|mb}e t{u^o|uo}·. |
| | #sie #st{e|ê}t #vngerne {#v|û}f g{e|ê}n mir. / |
| | l{au|ou}fe ich hin {#v^e|u}{mm|mb}e, ich bin doch / imm#er hinder ir·: |
| | wie mac #sie mich de#n/ne ange#sehen·? |
| | ich w{o^e|o}lte, daz ir {au|ou}ge#n / an ir nacke #st{u^e|üe}nden, |
| | #s{o|ô} m{u^e|üe}#st ez {a|â}n / ir dan{g|c} ge#schehen·. |
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| f Namenl/101r 19 |
| II | |
| II | f Namenl/101r 19 = L 55,35 |
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| Überlieferung: Weimar, Herzogin Anna Amalia Bibl., Cod. Quart 564 , fol. 103r |
| | †[[1 Crux: Siehe die Anmerkung zur vorausgehenden Str. f Namenl/101r 18.]] t{ey|ei}let #v{m|mb}e mich |
| | _h{a|â}t|_ / #vnd k{e|ê}rt %#Jm den rucke z{u|uo}. / |
| | %We{n|nn} ma{g|c} #sie doch er{p|b}arme#n #sich? |
| | ich w{ai|ei}{ß|z}, wa{s|z} ich / d{o|a}rumb {th|t}{u|uo}. / |
| | %Sie #st{e|ê}t #vngerne gegen mir. |
| | _|l_{au|ou}{ff|f}[[1=, Konjektur nach ABE]] ich hin #vmbe, / {p|b}in doch %#Jmmer hinder %#Jr·: |
| | wenn ma{g|c} #sie mich / doch an>>ge#sehn#n? |
| | %#Jch wolde, da{s|z} %#Jr {au|ou}gen an dem / nacke #st{u^:|üe}nde_|n_·, |
| | #s{o|ô} m{u^:|üe}#ste #sie e{s|z} {a|â}n %#Jr{en|} dan{ck|c} %Jehen. / |
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| A Wa 23 |
| VI | |
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| Überlieferung: Heidelberg, UB, cpg 357, fol. 6v |
| | [ini W|1|blau]er ga{b|p} dir, %minne, den gewalt·, |
| | d#c d#v #s{o|ô} gewalt{i|e}{ch|c} bi#st·? |
| | d#v twinge#st beid[ho e ho] / #i#vnc #vn#d alt·, |
| | d{a|â} v{#v|ü}r[[1 i¬v{#v|ü}r~i$ Die beiden i¬v~i hsl. sehr dicht aneinander und nicht von i¬w~i zu unterscheiden]][[3 i¬dâ vür~i ›dagegen [helfend]‹ (Le III, Sp. 584).]] kan niema#n dekeinen li#st·. |
| | n#v lobe ich got, #s{i|î}t d{i|î}ni#v ba#nt· / |
| | mich #s#vlen{t|}[[5 i¬#s#vlent~i = i¬sulen~i. Vor allem wobd. entwickelt sich bei stV., swV. und Präterito-Präsentien ein Einheitsplural entweder auf i¬-ent~i oder i¬-en~i (vgl. Fnhd. Gramm. § M 94,1b, § M 135 Anm. 2; h¬25~hMhd. Gramm. § E 32,2).]] twingen·, d#c ich #s{o|ô} rehte h{a|â}n erkant·, |
| | w{a|â} diene#st w#erdecl{i|î}chen / l{i|î}t·. |
| | d{a|â} vo#n k#vm ich niem#er·, gn{a|â}de, fr{ow|ouw}e k{#v^i|ü}n{i|e}ginne. |
| | l{a|â} mich dir leben m{i|î}ne / #Zz{i|î}t·. / |
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| C Wa 199 (195 [201]) |
| V | |
| V | C Wa 199 (195 [201]) = L 56,5 |
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| Überlieferung: Heidelberg, UB, cpg 848, fol. 133rb |
| | [ini W|2|blau]er ga{b|p} dir, %mi#nne, den gewalt·, |
| | d#c d#v do{h|ch} / #s{o|ô} gewalt{i|e}{g|c} bi#st·? |
| | d#v twinge#st beide / #i#vn{g|c}_e|_[[1=, Konjektur nach A]] #vn#d alt·, |
| | d{a|â} f{u^i|ü}r[[3 i¬dâ für~i ›dagegen [helfend]‹ (Le III, Sp. 584).]] kan niema#n keinen / li#st·. |
| | n#v lob ich got, #s{i|î}t d{i|î}n{u^i|iu} bant· |
| | mich #s#v-/len twinge#n, d#c ich #s{o|ô} rehte h{a|â}n erkant·, |
| | w{a|â} / diene#st w#erde{k|c}l{i|î}chen l{i|î}t·. |
| | d{a|â} vone k#vme ich / niemer, gn{a|â}de, fr{ow|ouw}e k{u^i|ü}n{i|e}ginne·. |
| | l{a|â} mich / dir lieben,[[3 Etwa ›Lass mich dir lieb werden, mein Leben‹.]] m{i|î}n{#v^i|iu} z{i|î}t·. / |
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